Wednesday, May 22, 2019

चुनाव खत्म होने को है ...

************    चुनाव खत्म होने को है****************

  23 मई की सुबह को  रुझान आने शुरू हो जाएंगे ।शाम तक नतीजे भी साफ हो जाएंगे और ये पता चल जाएगा की अगली  लोकसभा में वह कौन लोग होंगे जो देश का प्रतिनिधत्व करेंगे। इन 543 लोगों के कांधो पर देश को आगे ले जाने की पूरी जिम्मेदारी रहेगी और हम केवल ये आशा कर पाएंगे की जिन लोगो को देश ने बहुमत से चुना है वो अपने क्षेत्र और देश हित में काम करेंगे ।

   इस बार के चुनाव कई  तरह से निराले थे । सबसे बड़ा बदलाव  देखने को मिल रहा है कि इस बार कोई nota न दबाते हुए निर्णायक वोट डाल रहा है । दूसरी बड़ी दिलचस्प बात ये ही की आपके मोबाइल स्क्रीन पर चुनाव प्रचार हो रहा था । एक ओर मोदी जी को चाहने वाले  पूरी तरह एक जुट होकर उनका समर्थन कर रहे थे तो दूसरी ओर उनके विरोधी जमकर अटकले लगा रहे थे । 1996 से मैने देश की चुनाव प्रक्रिया से जुड़ने की कोशिश की है । इतने सालो में कभी नही देखा कि किसी प्रधान मंत्री को हटाने के लिए विपक्ष ने चुनाव लड़ा हो । शायद इमरजेंसी के समय ऐसा हुआ हो पर मुझे उसकी ठीक जनकारी नही है। इस बार जब सारे विपक्षी दल एक स्वर में मोदी विरोधी भाषण देने लगे तो लगा की बस मोदी का हारना तय है ।

    लेकिन जैसे जैसे चुनाव के दिन निकट आने लगे तो पता चला कि विपक्ष में किसी भी प्रकार की ट्यूनिंग नही हो पा रही । किसी भी लड़ाई को जितने के लिये आपका उद्देश्य तय करना और उस उद्देशय को प्राप्त करने के लिए सबसे उपयुक्त रणनीति बनाना आवश्यक होता  है । जब सारे विपक्ष ने तय कर लिया था की इस चुनाव का एकमात्र उद्देश्य है मोदी हटाओ  तब  वह क्यों आपस में लड़ने लगे । अगर हर सीट पर विपक्ष का केवल एक प्रत्याशी खड़ा होता तो भाजपा का  जीतना मुश्किल हो जाता।

    इस योजना के लिए आपको केवल मिलकर एक सर्वेक्षण करना था  और सर्वसहमति से सीटों का बटवारा करना था। जब आप ये निर्णय ही एक जुट होकर  नही ले पाए तो क्या प्रधान मंत्री चुनना और मंत्री पद बाटना आपके लिए संभव हो पाता ? बस यह बात जिसके पल्ले पड़ी वो समझ गया था की चुनाव कौन जीतेगा । इस से पीड़ित होकर नीतीश कुमार जी ने पहले ही इस गठबंधन का साथ छोड़ दिया था । हालाकि वो भी 2014 में मोदी का विरोध कर चुके थे पर जनता के हित में उन्होंने कुछ समझौते किये ।इसे कहते है सही राजनीती।

    अब जो भी ये विश्लेषण समझता है उसे ये तो पता है की जीत कौन रहा था । तो अगर जो जीत रहा है वो व्यक्ति लोकप्रिय है और आपके अनुसार उसकी कार्य प्रणाली से लोग संतुष्ट है तो क्या उसका समर्थन करना गलत है ?

     चुनाव में भाजपा का समर्थन पहले भी हमने किया है ।पर इस बार  काफी बातें सुन्नी पड़ी जो आवश्यक नही थी । आप इसे polarisation कह सकते है  और भाजपा को जिम्मेदार ठहरा सकते है ।पर विपक्ष समर्थको ने मोदी समर्थको की बुराई में कोई कसर नही छोड़ी । आप मुद्दों पर डिबेट करे पर व्यक्तिगत बातें करना आवश्यक हैं क्या ? दोस्तो से फिर भी झगड़ लो पर परिवार वालो की बात मानना तो दूर सुन्ना भी नही, इस प्रकार का polarization इस बार सोसिअल मीडिया ने कर दिखया है । जब हम छोटे थे तो वोट करने से पहले माता पिता से एक बार चर्चा कर लेते थे और सहमति बनाते थे । इस बार मुझे यकीन है कि बहुत से परिवारों में भी वोट विभाजित हुए है 🙂

     पिछली बार 2014 के चुनाव में सबसे तीखी बात जो सुनने मिली थी वो ये थी की "तुम्हारी समझ कुछ नही पढ़ रहा । तुम बस हवा के साथ बह रहे हो "। इसका आप उत्तर दे भी सकते है।
     पर इस बार जो बातें कही गई वो बेहद व्यक्तिगत और निंदनीय स्वरूप के थे । किसीने उम्मीद की कि जल्द आपके घर में घुसकर कोई आपकी कुटाई करेगा तब आपको पता चलेगा कि आपने क्या गलत किया। किसीने कहा की आप अंधे हो गए हो । किसीने हमे मूर्ख अज्ञानी बताया । किसीने कहा की आपने बचपन में संघ की शाका में पढ़ाई  तो नही की हैं । सबसे ज़्यादा जो बात चुभी वो बात थी फेक nationalism की । मित्रो देश उतना ही आपका है जितना हमारा और दोनो अलग अलग रास्तो से देश हित का उद्देश्य लेके ही चल रहे है , इतना  तो हम एक दूसरे के भावनाओ का आदर करे तो सही ही रहेगा । इतना तो सम्मान प्रतिध्वंदी के लिए बनता है। भावनाओ में बहकर हम सबने कुछ सीमाएं लांगी ।

      एक और शब्द जिसका काफी प्रयोग हुआ वो था 'भक्त' .मीरा भी थी।हनुमान भी थे । प्रह्लाद भी थे । शिव जी के भी है । कृष्ण के भी हैं ।राम जी के भी हैं । हमारे कुछ atheist /liberal भाइयों ने इसका प्रयोग करना उयुक्त समझा । पर अपमानजनक वाक्यों  में इस शब्द का प्रयोग मुझे तो  सही नही लगता । बाकी आपकी मर्ज़ी ।

      अब जब एग्जिट पोल के खुलासे हुए तो कुछ मित्र उसको भी ठुकराने में लग गए । में ये नही कहता की आप अपनी बात न रखे पर आप ये बात भी जानिए की ज्यादातर मतदाता आपकी बात से सहमत नही थे और नाही आप अपनी बात उन तक पहुंचा पाए।
      "पर वो तो फेकता है।झूत बोलता है।स्वार्थी है। चोर है ।" ..इस तरह की बात करना भी क्या सही है इस पर विचार करे।यह भी सोचिये की इस प्रकार से किसी एक व्यक्ति विशेष पर निशाना साधने वाली आपकी रणनीति कितनी सफल रही ।

    अंत में विपक्ष के समर्थको से एक ही बात सामने आयी है जो चर्चा का विषय बना सकते है। कि विदेशो की तरह क्या हम भी पब्लिक डिबेट्स नही करवा सकते । इसे हर सीट पर करना होगा ताकि सर्वोत्तम प्रत्याशी चुनकर आये। हो सकता है कि जब जनता और बढ़कर हिस्सा लेगी तो मीडिया वाले भी व्यर्थ का शोर न करते हुए ऐसे कार्यक्रम कर सकेंगे। पर हाँ इसके लिए प्रत्याशियों का स्तर भी बढ़ाना होगा। अगर मोदी को हराना उद्देश्य है तो आप अपना सर्वोत्तम प्रत्याशी उनके  सामने चुनाव के लिये खड़ा करें । तभी तो होगा वो मुक़ाबला बराबर का ।

       कल का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। आज गणेश संकस्ती का पावन पर्व है । गणपति जी से प्रार्थना की  । पार्टी चाहे जो भी जीते मेरी हमेशा  यही मंशा रही है कि देश में एक स्थिर सरकार बने जो अगले पांच साल के लिए हमे प्रगति के पथ पर ले चले ।

      जय हिन्द । भारत माता की जय ।
      चौकीदार चले घर । अब अकेला काफी है ।


नोट : ये किसी IT cell का लेख नहीं है । ये मेरे मन की बात है ।

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